Nritya Aur Parikathayein | Anwesha Rai 'Mandakini'
Description
नृत्य और परिकथाएँ | अन्वेषा राय 'मंदाकिनी'
मेरे पाँव,
बचपन से थिरकते रहे,
किसी अनजान सवालिया धुन पर...
मैं बढ़ती रही.. नाचती रही..
मेरे जीवन का उद्देश्य यह खोज भर रहा
कि मेरे इस जीवन संगीत का उद्गम कहाँ है ??
मेरा यह कारवाँ जारी रहा...
हर रोज़ मेरे पग उस संगीत की खोज में
नृत्य करते चले गए !!
मैं शायद नहीं जानती हूँ
कि जीवन के किस रोज़
मेरा परी-कथाओं से
विश्वास का नाता जुड़ गया!
परी-राजकुमार को लाँघकर
मैं एक दिन इन कहानियों को ही
अपना सर्वस्व दे बैठी,
और मेरी कहानियों ने
शंका का लेशमात्र भी ताप नहीं सहा !
शायद कहानियों की किताबें भी
ये जानती थी
कि हर विश्वास कि कीमत
एक राजकुमार नहीं होता !!
मेरा नृत्य सबने देखा,
परिकथाएँ सुनाते वक्त
मेरी आँखों की चमक भी
सबको लुभाती रही...
मगर हे प्रियतम,
तुम्हारे सम्मुख मेरे यह पाँव
मेरे काबू में नहीं रहे...
एक दिन अचानक नाचते हुए यह रुक गए
कि मेरी खोज पूरी हो चुकी थी,
मेरे जीवन संगीत के स्त्रोत
अब यह तुम्हारी धुन पर थिरकेंगे
मृत्यु के पूर्व कभी ना रुकने के लिए..
मेरे आँखों की यह चमक
प्रेमाश्रु बन बह चुकी है
तुम्हारी हथेलियों मे...
लोग कहते हैं कि मेरी आँखें बोलती हैं -
"विश्वास की भाषा"
कहती हैं किे
तुम इनको खालीपन से कभी नहीं भरोगे !!























